रविवार, 8 मार्च 2015

जब दिशा बताता था ध्रुव तारा




गुज़र गया वो ज़माना
जब दिशा बताता था ध्रुव तारा
अब तो इन फ्लड्स लाइटों की रोशनी से
भर गया है आसमान सारा
अब दिशा बताती है
Google मैप
इंसानों को इंसानों से बढ़कर
भरोसा हो गया है मशीनों पर
दीख रहा है वो दिन
जब मशीनें भरेंगी इंसानों में चाबियाँ
और दौड़- दौड़ करेगा इंसान काम
तब इंसानियत चुका ना पायेंगी
विज्ञान का ऋण
खो गयीं हैं हमारी दिशाएँ
गुम गए हैं हम
अब भी जो ना खोजा ध्रुव तारे को
खो जायेंगी हमारी पीढ़ी

खो जायेंगे सदा के लिए हम।

शनिवार, 4 अक्टूबर 2014

रिश्ते

माज़ी की आती आवाज़ों से
ऐ दोस्त पशेमां मत होना
मेरे दुःख दर्द ख़्यालों से
ऐ दोस्त परेशां मत होना

हम जोगी थे हम जोगी हैं
इक दर पे कहाँ टिक पायेंगे
दो दिन की मेहमां नवाजी से
हमे वक़्त जियादा मत देना

दो दिन पहलू में रह तेरे
सीखे हैं कितने गीत नये
इन गीतों को इक शक़्ल तू देना
राग भुला तुम मत देना

वो रिश्ते थे या थे वो छलावा
समझने की कोशिश ना कभी की
जीना सीखला दिया,किसी को-
मगर छलावा मत देना

रिश्तों को मैं समझ ना पाया
शायद गहरे उतर गया था
पर जल पृष्ठों के ये रिश्ते
ना टिकते, टिकने मत देना

माज़ी की आती आवाज़ों से
ऐ दोस्त पशेमां मत होना
मेरे दुःख दर्द ख़्यालों से
ऐ दोस्त परेशां मत होना

सोमवार, 21 जुलाई 2014

दुनिया के रंग

तूलिका में रंग भर कर
ज्‍यों  उतारा  कैनवस  पर 
आंसुओं के रंग से
है हो गया फिर कैनवस तर

क्‍यों कोई तस्‍वीर है बनती नहीं
तूलिका अवरुद्ध, सी क्‍यों हो रही है
चित्र किसका खिंचना मैं चाहता
चित्र का आयाम क्‍या हो, क्‍या पता
सोच मेरी विरुद्ध, सी क्‍यों हो रही है

रंग में सब रंग क्‍यों हैं घुल रहे
कैनवस के रंग सब क्‍यों धुल रहे
रक्‍त कैनवस, नील कैनवस
ये हरित, ये पीत कैनवस
रंगों का सम्‍वेत कैनवस
ये यहां है श्‍वेत कैनवस

अब मुझे एहसास सच का हो गया
कैनवस का भ्रम भी मेरा खो गया

इन सजीले रंग से अभिजात आंखें सेक लो
झूठ-सच का फर्ज, जो चाहो तो दर्पण देख लो

शनिवार, 12 जुलाई 2014

रात भर नींद मुझको है आती नहीं

याद तेरी जो दिल से है जाती नहीं
रात भर नींद मुझको है आती नहीं

है मुझी से मुहब्‍बत मुझे ना पता 
करती मुझसे मुहब्‍बत बताती नहीं

हर जगह एक चेहरा ही दिखता मुझे
और किसी की छवि मुझको भाती नहीं

इस क़दर दिल से मुझको सताती है वो
रूठता हूं जो मैं तो मनाती नहीं







गुरुवार, 30 जनवरी 2014

दुल्‍हन

थिर- थिर  स्थिर नयन  औ'   चपल  चारु  उद्वेलित मन 
घायल  जनचित्‍त होते  देखा  पड.ती जब तिर्यक  चितवन 
सुधा  लिये  फिरती  निर्मल  कोमल   घट  तिमिरांचल में 
बन भ्रमर भ्रमण करते कितने पाने को मधु उपवन -उपवन

वक्र  वलय-सी  देहयष्टि  सुन्‍दर  ही  नहीं  वो सुन्‍दरतम
घन केश पाश जो लास करे कोमल ही नहीं वो कोमलतम
है वीणा के  तानों-सी वाणी  मघुर-मलय-मिश्रित-सुरभित
सुन्‍दर  कोमल  मघुर  योग  वो प्रिय नहीं वो है प्रियतम

लाजवंति-सी  लज्जित हो  है  डाल शब्‍द का अवगुण्‍ठन
कर  सोलह  सिंगार  पहन   धानी   चूनर-सा   पैरहन
हो रहे चकित हैं लोग देख सौन्‍दर्य तडि.त-सा उज्‍ज्‍वलतम
मैं  कहता  'कविता'  है मेरी  जग  कहता है  है दुल्‍हन