तूलिका में रंग भर कर
ज्यों उतारा कैनवस पर
आंसुओं के रंग से
है हो गया फिर कैनवस तर
क्यों कोई तस्वीर है बनती नहीं
तूलिका अवरुद्ध, सी क्यों हो रही है
चित्र किसका खिंचना मैं चाहता
चित्र का आयाम क्या हो, क्या पता
सोच मेरी विरुद्ध, सी क्यों हो रही है
रंग में सब रंग क्यों हैं घुल रहे
कैनवस के रंग सब क्यों धुल रहे
रक्त कैनवस, नील कैनवस
ये हरित, ये पीत कैनवस
रंगों का सम्वेत कैनवस
ये यहां है श्वेत कैनवस
अब मुझे एहसास सच का हो गया
कैनवस का भ्रम भी मेरा खो गया
इन सजीले रंग से अभिजात आंखें सेक लो
झूठ-सच का फर्ज, जो चाहो तो दर्पण देख लो
ज्यों उतारा कैनवस पर
आंसुओं के रंग से
है हो गया फिर कैनवस तर
क्यों कोई तस्वीर है बनती नहीं
तूलिका अवरुद्ध, सी क्यों हो रही है
चित्र किसका खिंचना मैं चाहता
चित्र का आयाम क्या हो, क्या पता
सोच मेरी विरुद्ध, सी क्यों हो रही है
रंग में सब रंग क्यों हैं घुल रहे
कैनवस के रंग सब क्यों धुल रहे
रक्त कैनवस, नील कैनवस
ये हरित, ये पीत कैनवस
रंगों का सम्वेत कैनवस
ये यहां है श्वेत कैनवस
अब मुझे एहसास सच का हो गया
कैनवस का भ्रम भी मेरा खो गया
इन सजीले रंग से अभिजात आंखें सेक लो
झूठ-सच का फर्ज, जो चाहो तो दर्पण देख लो